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Thursday, November 29, 2007

अलविदा

ज़िंदगी के हर मोड़ पे कोई मिलता हैं,
फिर भी शाक्स एक भी साथ ना रहे सदा,
हर एक के मंज़िल अलग होती हैं,
तभी तो लफ्ज़ दो आकर कहे अलविदा!

1 comment:

Dr Aditya Barigali said...

आते जाते लफ्जों की क्या मजाल?
बून रही है आप अपने आसुओं से जाल,
ठहरते लम्हों मे मज़ा लीजिये,
हरगिज़ रहोगे खुश हाल ,

लोगों का क्या भरोसा?
जब मन मंजिल हो बेहाल!
अरे हुज़ूर अपने मे मस्त रहिये,
सीखेंगे दूसरे भी आपकी,
मदमस्त भरी चाल....

Voices in my head

I am never alone Those days have gone long There are voices, there are voices… There are voicessssss up - when I close my eyes ...