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Monday, February 11, 2008

बचपन


चंदा रे,चंदा रे
दे दे जवाब मेरी
खोया कहाँ ,ढूड़ना हैं,
प्यारा सा बचपन मेरी ...

जब थी मैं  छोटी,
मा बनाती थी मेरी छोटी,
खेल खेल में बालों में माटी,
हाथ धोए बिन खाई थी रोटी...

जो कराई थी गुडियों की शादिया,
गवा  थे जिसके  , कलियाँ और वादियाँ ,
बीत गये यूँ ही नज़ाने कितने सदिया,
वो सारे हँसी ,बाते,गुदगुदियाँ.....

घर - घर खेलना और छुपा चुप्पी,
रातों भर की दोस्तों से गप्पी...
बड़ों के लिए डाँट और जप्पी...
वो सारे यादें, ताज़े दिल में छपी

यहीं तो हैं खुद्रत की कल्पना
मैं दू मेरे नन्हे को यह सारे सपना,
दूंड़ु उसकी बचपन में बीता ये बचपना
रात छत पे आके तूने यहीं कहाना???

चंदा रे,चंदा रे
दे दे जवाब मेरे.....

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